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Sunday, August 20, 2017

पशु क्रूरता के नाम पर बंद होती पौराणिक तांगा दौड़

क्षेत्रफल की दृष्टि से नागौर का राजस्थान में पांचवा स्थान हे|
नागौर के खरनाल, मुंदियाड़, कुम्हारी-बासनी और रोल में कईं सौ सालों से धार्मिक आस्था के नाम पर ऐतिहासिक तांगा दौड़ आयोजित की जाती रही है,जो केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक ही नहीं अपितु हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक है| जिसे विगत कुछ समय से पशु क्रूरता के नाम पर कोर्ट द्वारा बंद कर दिया है | जो जिला वीर तेजाजी महाराज (जिन्होंने गायों की रक्षा के लिये अपने प्राणो का बलिदान कर दिया था),  मीरा बाई, चतुरदास जी महाराज, संत शिरोमणि श्री लिखमीदास जी महाराज सहित कईं लोक देवी-देवताओं की जन्मस्थली रहा हो, वंहा पर पशु क्रूरता की बात करना भी दुर्भाग्यपूर्ण है|
                        यह पहेला मौका नहीं हे जब पशु क्रूरता के नाम पर किसी कार्यक्रम पर कोर्ट द्वारा रोक लगाई गयी हो, इससे पहले भी तमिलनाडु में जल्‍लीकट्टू पर रोक लगायी गयी थी| ज्ञातव्य रहे की जल्‍लीकट्टू , तमिलनाडु के ग्रामीण इलाक़ों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है। सदियों से चली आ रही इस ऐतिहासिक तांगा दौड़ जिसमे केवल कुछ पल के लिए बेलों को तांगे में जोड़ा जाता है, सुप्रीम कोर्ट/ राजस्थान हाई कोर्ट/ पशु कल्याण बोर्ड को उसमे भी 'पशु क्रूरता' नजर आ गयी परन्तु "ईद" के दिन दी जाने वाली बकरों की बली तथा अपनी मनोकामनायें पूर्ण होने पर "हिन्दू देवी देवताओं" के दी जाने वाली बली और साथ ही हर सुबह शाम भोजन में चिकन, मटन, मांस आदि के लिये काटे जाने वाले पशुओं पर इन सरकारों और न्यायलयों को कभी पशु क्रूरता क्यों नजर नहीं आती ?
                         अब ग्रामीण यह चाहते हे की की सरकार अध्यादेश लाकर इस तांगा दौड़ पर लगी रोक को हटाकर इस पौराणिक और ऐतिहासिक दौड़ को पुन: शुरू करवायें | राज्य तथा केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार को देखते हुवे ग्रामीणों को यह उम्मीद हे की जब जल्लीकट्टू जैसे खूनी खेल पर से केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर उस पारंपरिक खेल को खेलने की इजाजत दे दी थी तो अवश्य ही यह तांगा दौड़ पुन: शुरू हो जायेगी |  क्षेत्र प्रतिनिधियों और सरपंचों  ने इस दौड़ को पुन: शुरू करवाने के लिये अपनी ओर से प्रयास तेज कर दिये है और साथ ही इन्होने कहा है की अगर यह दौड़ शुरू नहीं हुयी तो फिर कलक्ट्रेट पर महापड़ाव डाला जायेगा, हाइवे जाम किये जायेंगे और बाजार बंद रखे जायेंगे और साथ ही जबरन तांगा दौड़ करवाई जायेगी ||
                     देश के राष्ट्रपति खुद घोड़ों की बग्गी के अंदर चलते हे| पुलिस और आर्मी में घोड़ों की एक अलग रेजिमेंट होती है| यदि पशु क्रूरता के नाम पर धीरे-धीरे इस तरह सभी काम बंद कर दिये गये तो हमारे सारे मेले और संस्कृतियां एक दिन खत्म हो जायेगी :- हनुमान बेनीवाल, विधायक खींवसर ||

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